Irfan Qureshi
नाज़ुक सी कलियॉं हो तुम ,
तुम्हें तो महकना है अभी ।
नई नस्ल के परिंदे हो तुम ,
तुम्हें तो चहकना है अभी ।
चारों तरफ छाये हुऐ ,
इस घनघोर अंधेरे में ।
इल्म हुनर की रोशनी से ,
तुम्हें तो चमकना है अभी ।
हज़ारों मुश्किलें दुश्वारियां,
होंगी राहें मंज़िल में ।
मुश्किलों को आसान बनाकर ,
तुम्हें तो चलना है अभी ।
किनारे से मझधार और ,
मझधार से उस पार तक ।
अपनी कुव्वत से दरिया पार,
तुम्हें तो करना है अभी ।
है सुनहरा मुस्तकबिल तुम्हारा ,
तुम्हारे इन्तज़ार में यारों ।
मगर मेहनत की आग में ,
तुम्हें तो जलना है अभी ।
ये जो हवाऐं हैं मुखालिफ ,
तुम्हारे ये कुछ भी नही ।
इन तूफ़ानों के रूख़ को,
तुम्हें तो बदलना है अभी ।
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