लखनऊ में नवाबी दौर में बनीं इमारतें खुद में इतिहास का खजाना समेटे हैं। इसमें से कई ऐसी हैं जिन्हें हम देखते तो रोज हैं पर उनमें छिपी कहानियों से अनभिज्ञ हैं। ऐसी ही एक इमारत है लाल बारादरी। दुनिया भर में लाल बारादरी के नाम से मशहूर इस इमारत को पहले ‘कस्र-उल-सुल्तान’ के नाम से जाना जाता था। इसका शाब्दिक अर्थ होता है, सुल्तानों का महल। इसकी गर्त में छिपे राज पर से परदा उठाने की कोशिश करती यह रिपोर्ट
इतिहासकार रोशन तकी बताते हैं कि 18वीं शताब्दी के आखिर में नवाब सआदत अली खां ने अपनी कोठी फरहत बख्श के पास इसका निर्माण करवाया। लखौरी ईंट और गुलाबी गारे से बनी सुर्ख लाल रंग की बारादरी अपने आप में अनूठी है। उत्तर की तरफ इसमें दो रास्ते हैं, जो दरबार हॉल में पहुंचते हैं। पूरे भवन के नीचे तहखाने हैं। इसमें लगी जालियां खूबसूरती की मिसाल है। इसके चारों ओर लंबी-लंबी मेहराबें हैं। सामने की दोनों मेहराबों की ऊंचाई इसकी मंजिल जितनी ही है।
नवाब सआदत अली खां ने ‘कस्र-उल-सुल्तान’ नाम के इस दरबार हॉल में तख्त और मसनद के साथ दरबार की शुरुआत की। 1819 में गाजीउद्दीन हैदर अंग्रेजों को एक करोड़ रुपये और कुछ जागीर देकर पगड़ी की जगह ताज पहन कर इस सुल्तानी कोठी में तख्तनशीन हुए। अवध के तत्कालीन रेजीडेंट सर जान बेली ने उन्हें अपने हाथों से हीरे-जवाहरात से जड़ा सोने का ताज पहनाया था।
इसके बाद नसीरुद्दीन हैदर के दौर में ठीक विलायत के दरबार की तरह शाही सिंहासन हटाकर सोने व हाथी दांत की कामदार कुर्सियां रखी गईं। बादशाह की पोशाक भी अंगररखा से बदलकर कॉलरदार कोट हो गई। दरबार में चंदन चौकियों की जगह सोफे डाल दिए गए। पहरेदार भी बंदूक से लैस हो गए। नसीरुद्दीन की इस फैशनपरस्ती ने तहलका मचा दिया। पश्चिमी सभ्यता का असर इतना गहरा था कि छतर मंजिल की बेगमों की मुलाकात बेलीगारद के अधिकारियों से कराई जाने लगी। हालांकि नसीरुद्दीन की खास महल सुल्तान बहू की परछाई तक देखने की इजाजत किसी को नहीं थी।
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वे दरिया पार हुस्नबाग की महलसरा में रहती थीं। दरबार के इस रूपरंग की तारीफ लेखक विलियम नाइटन ने किताब में की है। उस वक्त ताजपोशी के समारोह में मौजूद फ्रांसीसी पर्यटक फैनी पार्क्स ने उनकी हूर बेगमों की तारीफों के पुल बांधे। लाल बारादरी की दीवारों के साये में ही सल्तनत अवध का भाग्य बनता बिगड़ता रहा है। नवाब वाजिद अली शाह तक की ताजपोशी इसी लाल बारादरी में हुई।
कह सकते हैं कि लखनऊ के इतिहास में इस लाल बारादरी का बड़ा महत्व रहा है। बाद में मुद्दतों इसमें मुर्दा अजायबघर रहा। फिर इसमें ललित कला अकादमी का शुभारंभ किया गया।
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