जानिए लखनऊ के घंटाघर की एक से बढ़कर एक खासियत


एक वक्त था जब शहर का समय घंटाघर तय करते थे। पूरा शहर इन्हीं के बताए समय पर अपनी दिनचर्या निर्धारित करता था। आम ओ या खास, घडिय़ाल की घनघनाहट पर हर कोई यकायक ही सतर्क हो उठता था और दिनभर में किए जाने वाले कामों को मन में दोहराने लगता था। कोई किसी भी काम में मसरूफ हो घंटाघर से अचानक आती आवाज हर किसी को चौंका दिया करती थी। ये घंटाघर न सिर्फ समय बताते थे, बल्कि अपनी वास्तुकला के सौंदर्य के लिए भी दुनिया भर में मशहूर थे। समय बदला, जीवन की गति बदली और ये घंटाघर धीरे-धीरे नेपथ्य में चले गए। आज कोई इनसे अपनी घड़ी नहीं मिलाता, लेकिन अपने आप में लखनऊ का इतिहास समेटे ये आज भी उसी तरह खड़े हैं, जैसे नीचे से गुजरते शहर को बदलते हुए देख रहे हों। समय की इन इमारतों ने खुद समय की मार झेली है, लेकिन हार नहीं मानी। वे आज भी अपनी जगह डटे हुए हैं।

लखनऊ में देश का सबसे ऊंचा घंटाघर

हुसैनाबाद का घंटाघर पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है, तो जीपीओ, सिटी स्टेशन, नगर निगम कार्यालय, लोहिया पार्क और क्रिश्चियन कॉलेज का घंटाघर अपनी सुंदरता के लिए पहचाना जाता है। जिस दौर में इनका निर्माण हुआ था उस वक्त लोगों के पास समय पता करने का कोई साधन नहीं था और घडिय़ां रखना सिर्फ रईसों के शौक थे। इसीलिए अंग्रेजों से लेकर कई नवाबों ने घंटाघरों का निर्माण कराया था। हुसैनाबाद क्षेत्र में ऐतिहासिक घंटाघर पूरे विश्व में अपनी खूबसूरती के लिए मशहूर है। इस ऐतिहासिक धरोहर के सौंदर्य को देखने के लिए दुनियाभर से पर्यटक नवाबों के शहर आते हैं। यहां के बाशिंदों के लिए घंटाघर किसी कोहिनूर से कम नहीं है। नवाबों के शहर लखनऊ का घंटाघर भारत का सबसे ऊंचा घंटाघर है।

यह घंटाघर 1887 ई. में बनवाया गया था। इसे ब्रिटिश वास्तुकला के सबसे बेहतरीन नमूनों में से एक माना जाता है। 221 फीट ऊंचे इस घंटाघर का निर्माण नवाब नसीरूद्दीन हैदर ने सर जॉर्ज कूपर के आगमन पर कराया था। वे संयुक्त अवध प्रांत के प्रथम लेफ्टिनेंट गवर्नर थे। लंदन के बिग बेन की तर्ज पर बने इस घंटाघर के निर्माण में उस वक्त 1.75 लाख रुपये की लागत आई थी। इसको अंगे्रजी कलात्मक कुशलता का उदाहरण माना जाता है। रोस्कल पायने ने इस 67 मीटर ऊंचे घंटाघर की संरचना तैयार की जो विक्टोरियन और गोथिक शैली की संरचनात्मक डिजाइन को दर्शाता है। घड़ी के निर्माण के लिए गनमेटल का प्रयोग किया गया है। इसके विशाल पेंडुलम 14 फीट की लंबाई के हैं और घड़ी के डायल पर फूलों की डिजाइन के नंबर बने हुए हैं। सर जॉर्ज ताजिर को समर्पित घंटाघर को विजय स्तंभ स्वरूप माना जाता है।

लंदन के बिग बेन टॉवर की तर्ज पर बना घंटाघर

जगत नारायण रोड स्थित क्रिश्चियन कॉलेज परिसर में भी एक खूबसूरत घंटाघर है। इसका निर्माण भी लंदन के बिग बेन टॉवर की तर्ज पर 1913 में किया गया था। 1862 में बने क्रिश्चियन कॉलेज में उसी वक्त एक खूबसूरत घंटाघर बनाया गया था। इसका निर्माण इस मकसद से किया गया था ताकि छात्र समय के हिसाब से अपनी पढ़ाई करें। कॉलेज के शिक्षक डॉ. मॉलिंदु ने बताया कि पुरातत्व की मिसाल इस घड़ी का रखरखाव खास तरीके से किया जाता है।

हर 12 घंटे पर बजता है इसका घंटा

हजरतगंज स्थित नगर निगम कार्यालय का घंटाघर भी खास है। तकरीबन सौ साल से अधिक पुरानी इस घड़ी के रखरखाव का जिम्मा नगर निगम के पास है। नगर आयुक्त इंद्रमणि त्रिपाठी ने बताया कि घड़ी में नियमित तौर पर चाबी भरी जाती है। इसका निर्माण 1923 में हुआ था। उन्होंने बताया कि हर 12 घंटे पर इसका घंटा बजता है।

 

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कैथोलिक डिजाइन में बना हजरतगंज जीपीओ का घंटाघर

राजधानी के हजरतगंज जीपीओ का घंटाघर भी लोगों के आर्कषण का केंद्र है। वर्ष 1929 से 1932 के मध्य इस इमारत का निर्माण हुआ था और तभी अंग्रेज शासकों ने यहां घंटाघर बनवाया था। आज भी ये अंग्रेजी शासन की याद दिलाता है और कैथोलिक डिजाइन की घड़ी से जुड़ी यादें ताजा करता है। जीपीओ की ओर से यहां लगी घड़ी की पूरी देखरेख की जाती है और हर घंटे पर तेज आवाज के साथ घड़ी के घंटे बजते हैं।

200 साल पहले अंग्रेजी हुकूमत ने बनवाया था ये खूबसूरत घंटाघर

लखनऊ के दिल हजरतगंज स्थित मल्टीलेवल पार्किंग के सामने भी अंग्रेजी हुकूमत के दौर का एक घंटाघर है। इसका निर्माण 18वीं सदी में हुआ था। जिस इमारत पर ये घंटाघर है उसमें आज सेंट्रल बैंक आफ इंडिया का दफ्तर स्थित है। बेहद ही सुंदर और कलात्मक रूप से बने इस घंटाघर का निर्माण आज से लगभग दो सौ साल पहले हुआ था। बीच में कई साल तक इस घंटाघर की घड़ी खराब रही, लेकिन पिछले कुछ सालों से इसका रखरखाव किया जा रहा है।

 

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सुइयां सोने की तो अंकों पर लगे होते थे हीरे

हजरतगंज स्थित हिंदी संस्थान के बगल में चीफ पोस्टमास्टर जनरल बिल्डिंग में एक घंटाघर बना हुआ है। बताया जाता है कि अंग्रेजों के समय में बनी इस बिल्डिंग पर लगी घड़ी की सुइयां सोने की होती थीं। इसके अलावा इसके अंकों पर हीरे लगे हुए थे, जो चमकते रहते थे। इस घड़ी में चाबी भरी जाती थी। लेकिन ठीक से रखरखाव न होने की वजह से घड़ी बंद हो गई। फिर 80 के दशक में इसमें इलेक्ट्रॉनिक घड़ी लगाई गई।

सैटेलाइट के जरिये सेट होती है घड़ी की टाइमिंग

गोमतीनगर के लोहिया पार्क का घंटाघर आज के आधुनिक जमाने का घंटाघर है। इसका निर्माण समाजवादी सरकार ने कराया था। इस घड़ी की खासियत है कि इसका समय सैटेलाइट के जरिये सेट होता है। घड़ी को सैटेलाइट के माध्यम से सेट करने का उपकरण चेन्नई से आया है। लखनऊ शहर में ये दूसरी ऐसी घड़ी है जो फिलहाल चलती हुई हालत में है और लोग इससे समय पता कर सकते हैं। लखनऊ विकास प्राधिकरण ने इस पार्क में घंटाघर का निर्माण 2007 में कराया था।

 

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यह घंटाघर हैं बदहाल

शहर के पुराने लखनऊ के ही सिटी स्टेशन के पास बहादुर नवाब सैय्यद अहमद हुसैन खान ने अपने बेटे नवाब सैय्यद इरशाद हुसैन खान की याद में घंटाघर बनवाया था। 1922 में बने इस घंटाघर की घड़ी उस समय इंग्लैंड से मंगवाई गई थी। इसकी खासियत ये थी कि इसमें हर तीस मिनट के बाद घंटा बजता था। इस स्थान पर बाद में हामिद हुसैन पार्क का निर्माण हुआ। लगभग 55 फीट ऊंचे इस घंटाघर की सुई काफी समय से खामोश है और इनको बनवाने की प्रक्रिया भी कई बार शुरू हुई मगर प्रशासन की लापरवाही के कारण ये अब जर्जर अवस्था में पहुंच चुकी है। इसके अलावा अमीनाबाद स्थित हनुमान मंदिर के पास भी एक घंटाघर बनाया गया था, वह भी जर्जर अवस्था में है। वहीं नाका के शीतल धर्मशाला में बने घंटाघर का कोई पुरसाहाल नहीं है।

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