वैसे तो लखनऊ अपनी नवाबियत व ऐताहिसक धरोहरों के लिए मशहूर है, लेकिन लखनऊ को बागों का शहर भी कहा जाता है। इस शहर को बागों का भी शहर इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहां बहुत सारे बाग हैं जिनका अपना-अपना इतिहास है। यही वजह है कि शहर के कई हिस्सों को इन्हीं बागों के नाम पर बाटा गया है जैसे चारबाग, आलमबाग, तेलीबाग, डालीबाग और सिकंदर बाग। ये बाग सिर्फ बाग ही नहीं बल्कि ये शहर की धरोहर और शान हैं। इन बागों में से एक है लखनऊ का सिकंदर बाग।
सिकंदर बाग भी लखनऊ का एक बेहद पुराना हिस्सा है जिसको उद्यान या बाग के रूप में जाना जाता है। इस बाग में एक ऐतिहासिक महत्व की प्राचीन हवेली है। इसे अवध के नवाब वाजिद अली शाह ने 1822 में ग्रीष्मावास के तौर पर बनाया था। माना जाता है कि नवाब ने इसका नाम अपनी पसंदीदा बेगम सिकंदर महल के नाम पर सिकंदर बाग़ रखा था। इस उद्यान की आधारशिला नवाब सआदत अली खान ने सन 1800 में एक शाही बाग़ के तौर पर रखी थी। हालांकि 19वीं सदी के पूर्वाद्ध में इसे अवध के नवाब वाजिद अली शाह ने खूबसूरती के साथ विकसित किया था और इसका प्रयोग अपने गर्मी के दिनों में आरामघर के तौर पर किया करते थे। यह लगभग 150 एकड़ में फैला है और इसके बीचों बीच एक छोटा सा मण्डप है। इसी मण्डप में कला प्रेमी नवाब वाजिद अली शाह कथक नृत्य की शैली में प्रसिद्ध रासलीला का मंच करते थे और अपनी बेगमों के साथ समय व्यतीत करते थे।
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बाग में हुई थी 2000 सिपाहियों की मौत
इतिहास गवाह है कि 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान हुई लखनऊ की घेराबंदी के समय ब्रिटिश और औपनिवेशिक सैनिकों से घिरे सैकड़ों भारतीय सिपाहियों ने इस बाग़ में शरण ली थी। 16 नवंबर 1857 को ब्रिटिश फौजों ने बाग पर चढ़ाई कर लगभग 2000 सिपाहियों को मार डाला था। लड़ाई के दौरान मरे ब्रिटिश सैनिकों को तो एक गहरे गड्ढे में दफना दिया गया लेकिन मृत भारतीय सिपाहियों के शवों को यूं ही सड़ने के लिए छोड़ दिया गया था।
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इस लड़ाई में एक दलित महिला वीरांगना ऊदा देवी की एक मूर्ति उद्यान परिसर में कुछ साल पहले ही स्थापित की गयी है। ऊदा देवी घिरे हुये भारतीय सैनिकों की ओर से लड़ी थीं। ऊदा देवी ने पुरुषों के वस्त्र धारण कर एक ऊंचे पेड़ पर डेरा जमाया था। उनके पास कुछ गोला बारूद और एक बंदूक थी। जब तक उनके पास गोला बारूद था उन्होंने ब्रिटिश हमलावर सैनिकों को बाग में प्रवेश नहीं करने दिया था और हिम्मत के साथ लड़ती रही लेकिन जब उसका गोला बारूद खत्म हो गया, तो ब्रिटिश सैनिकों द्वारा गोलियों से छलनी कर दिया गया। आज भी सिकंदरबाग चौराहे पर इस साहसिक वीर महिला की मूर्ति लगी हुयी है।
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आज के दौर में सिकंदरबाग में कई बड़ी चीजे स्थापित है। हजरतगंज से सीधे लगा हुआ अशोक मार्ग सिकंदरबाग में ही आता है। यहीं पर शहर का दूरदर्शन केन्द्र भी स्थापित है। इसके अलावा भारतीय राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान, कृषि भवन आदि महत्वपूर्ण विभाग स्थापित हैं। सिकंदरबाग गेट ऑफिस के सहायक असिस्टेंट शादाब खान ने बताया कि आजकल यहां राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान स्थित है। और यह बहुत ही प्राचीन बाग है। इसे सिकंदरबाग गेट भी कहा जाता है।
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