Lucknow News :- 13 साल, 685 करोड़ रुपये खर्च, विकास शून्य। ये तीन आंकड़े एलडीए की 764 एकड़ में प्रस्तावित मोहान रोड योजना की प्रगति बताने के लिए काफी हैं। लोगों को उम्मीद थी कि नियोजित कॉलोनी में आशियाने के लिए भूखंड मिलेगा, लेकिन योजना में विकास कार्य शुरू कराने के लिए केवल कागजी कार्रवाई ही चालू है।
वहीं, बीते आठ माह से शासन-एलडीए यह नहीं तय कर पाए कि योजना का विकास निजी सहभागिता से कराया जाए या नहीं। आगरा एक्सप्रेस-वे के पास योजना में करीब 12 साल तक एलडीए ने खुद स्मार्ट सिटी से लेकर हाईटेक टाउनशिप विकसित करने के प्रस्ताव पर काम किया।
वर्ष 2020 की शुरुआत में निजी सहभागिता से विकास कार्य कराने के लिए बोर्ड बैठक में फैसला किया। अब प्रस्ताव शासन में भेज दिया गया है। हालांकि, इसके बाद खुद एलडीए ने कभी आवास विभाग से जानकारी नहीं ली। अधिकारियों का कहना है कि शासन से जवाब आने के बाद ही विकास शुरू कराने पर आगे की कार्रवाई होगी।
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एलडीए ने निजी सहभागिता में विकास कराने काे नेट प्रजेंट वैल्यू (एनपीवी) का आकलन कराया। यह मुआवजे पर खर्च से करीब दोगुना है। यानी, आज के समय में एलडीए के खर्च की वैल्यू करीब 1370 करोड़ रुपये है। यह केवल जमीन की मौजूदा कीमत ही कही जा सकती है। ऐसे में योजना लंबित करना एलडीए के लिए घाटे का सौदा हो सकता है।
अब तक जमीन पर कब्जा भी नहीं ले पाया प्राधिकरण
वर्ष 2018 में एलडीए ने योजना में जमीन पर कब्जा लेना शुरू किया। प्यारेपुर गांव में कुछ जमीनों पर कब्जा लेने के बाद विवाद बढ़ गया। ऐसे में पूरी प्रक्रिया रोकनी पड़ गई। ग्रामीणों की मांग है कि कलियाखेड़ा की जमीन के लिए भी एलडीए प्यारेपुर के बराबर मुआवजा दे।
वहीं, सर्किल रेट कम होने से कलियाखेड़ा की जमीन का मुआवजा जिला प्रशासन ने कम तय किया था। प्यारेपुर का सर्किल रेट ज्यादा रहा। ऐसे में मुआवजा भी अधिक मिला। किसान बराबर मुआवजा की मांग पर अड़े हैं, जबकि अधिकतर यहां मुआवजा ले चुके हैं।
परिवारों को मिल सकता था आशियाना
एलडीए के आकलन के मुताबिक योजना पर काम शुरू होता तो 25 से 30 हजार परिवारों को यहां आशियाना दिया जा सकता था। लेकिन, अधिकारियों की लापरवाही से लोगों को अनियोजित कॉलोनियों में आशियाना बनाना पड़ रहा है। मोहान रोड के आसपास ही पिंक सिटी जैसी बड़ी अनियोजित कॉलोनियां खड़ी हैं।
संपत्ति बेचने का अधिकार तो नहीं असली वजह
एलडीए के आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, एलडीए ने भले ही निजी सहभागिता से विकास के लिए बोर्ड में सहमति दी हो। हालांकि, इसके उलट निजी विकासकर्ता को संपत्ति बेचने के अधिकार देकर पूरा मामला फंसा लिया। शासन में बैठे वित्त विशेषज्ञ इस पर सहमति नहीं दे रहे हैं।
इसकी वजह यह है कि निजी विकासकर्ता से संपत्ति बेचकर पैसा लिए जाने में कई बार विधिक अड़चनें आ जाती हैं। ऐसे में संभव है कि एलडीए को वित्तीय मॉडल में बदलाव करना पड़े। ऐसा हुआ तो मोहान रोड योजना को विकसित होने में और अधिक देरी हो सकती है। ऐसे में खरीदारों का इंतजार बढ़ेगा।
कंपनी तय करेगी कीमत
निजी कंपनी ही यहां भूखंड की दरें तय करेगी। हालांकि, एलडीए का कहना है कि कॉस्ट समिति बनाकर दरें तय की जाएंगी। कोशिश होगी कि छोटे भूखंड, मकानों की कीमत कम ही रखी जाए। बड़े और कॉमर्शियल भूखंड़ों की कीमतें अधिक हो सकती हैं।
एयरपोर्ट भी नजदीक
योजना के एक तरफ एयरपोर्ट है तो दूसरी ओर आगरा एक्सप्रेस-वे है। वहीं, आउटर रिंगरोड से भी योजना तक आने को लिंक रोड बनाई जानी है। एक्सप्रेस-वे से भी इसका लिंक रहेगा। इससे यहां संपत्तियों की बिक्री अच्छी रहेगी।
शासन से निर्देश पर ही आगे की कार्रवाई
निजी सहभागिता पर विकास कराने को टेंडर प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। निजी कंपनी का चयन भी एलडीए कर चुका है। इसके लिए बोर्ड ने जनवरी में अनुमति दे दी है। अब केवल शासन का निर्देश मिलने का इंतजार है। – संजीव गुप्ता, अधिशासी अभियंता
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