लखनऊ. देश की सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की राजधानी लखनऊ (Lucknow) भारत के सबसे ज्यादा मशहूर शहरों में से एक है. कभी नवाबों के शहर (City Of Nawabs) के रूप में इसकी पहचान रही. यहां का व्यंजन, ऐतिहासिक इमारतें देश भर में अपनी अलग पहचान रखती हैं. इसके अलावा सियासत के क्षेत्र में भी इस शहर ने बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं. गोमती नदी के तट पर स्थित लखनऊ भारतीय इतिहास में कई महत्त्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी भी रहा है.
लखनऊ या यहां के आप पुराने बाशिंदे हैं तो प्यार से नखलऊ भी कह सकते हैं. अवध के नवाबों ने बड़े नाज़ से इस शहर को आबाद किया. उनके हर शौक की निशनियां यहां बिखरी हैं. बड़ा इमामबाड़ा की भूलभलैया में छिपी है नवाब आसफुद्दौला की वह कहानी, जब अकाल में जनता की मदद के लिए उसे बनाने में जुट गए. लखनऊ में हर मोड़ पर उस ज़माने की इमारतें रास्ता रोके खड़ी हैं. छोटा इमामबाड़ा, रूमी दरवाजा, छतर मंजिल, रेजीडेंसी, बारादरी, दिलकुशा, शाहनजफ इमामबाड़ा ऐसे कितने ही अद्भुत स्मारक चिन्ह लखनऊ को एक अलग पहचान देते हैं.
भारत में एक कहावत प्रसिद्ध है ‘बनारस की सुबह, अवध की शाम’. ‘अवध’ यानी लखनऊ, और लखनऊ एक ऐसा शहर जो अपनी तमीज, तहजीब एवं नफासत पसंदगी के लिए विश्व प्रसिद्ध है. एक ओर अपने ऐतिहासिक भवनों का गौरव लिए ये शहर खड़ा है, वहीं दूसरी तरफ नवीन शिल्प से भी अलंकृत है. यहां अवधी भाषा आपको मिलेगी तो अंग्रेजी भी, हिन्दी भी, उर्दू भी. हिंदी भाषा में मिठास यहीं घुलती है.
इतिहास
किसी भी शहर को समझने के लिए पहले हमें उसके इतिहास पर नजर डालना जरूरी होता है. लखनऊ का प्राचीन इतिहास ज्यादा नहीं मिलता. इस शहर का विस्तार मध्य काल के बाद ही पता चलता है, क्योंकि हिन्दू काल में, अयोध्या की विशेष महत्व रहा. लखनऊ की चर्चा ज्यादा नहीं मिलती. सबसे पहले मुग़ल बादशाह अकबर के समय में चौक में स्थित अकबरी दरवाज़े का निर्माण हुआ था. जहांगीर और शाहजहां के जमाने में भी यहां इमारतें बनीं लेकिन लखनऊ की वास्तविक उन्नति तो नवाबी काल में हुई.
1720 से शुरू हुई नवाबी परंपरा
दरअसल मुहम्मदशाह के समय में दिल्ली का मुग़ल साम्राज्य बिखरने लगा था. 1720 ई. में अवध के सूबेदार सआदत खां ने लखनऊ में अपनी सल्तनत कायम कर ली और यहीं से यहां शिया मुस्लिमों के नवाबों की परंपरा की शुरुआत मानी जाती है. इसके बाद लखनऊ में सफ़दरजंग, शुजाउद्दौला, ग़ाज़ीउद्दीन हैदर, नसीरुद्दीन हैदर, मुहम्मद अली शाह और लोकप्रिय नवाब वाजिद अली शाह ने शासन किया.
फैजाबाद से लखनऊ हुआ नवाबों की राजधानी
नवाब आसफ़ुद्दौला (1795-1797 ई.) के समय में राजधानी फैजाबाद से लखनऊ लाई गई. आसफ़ुद्दौला ने लखनऊ में बड़ा इमामबाड़ा, रूमी दरवाज़ा और आसफ़ी मस्जिद बनवाईं. इनमें से अधिकांश इमारतें अकाल पीड़ितों को मज़दूरी देने के लिए बनवाई गई थीं. आसफ़ुद्दौला के जमाने में ही अन्य कई प्रसिद्ध भवन, बाज़ार और दरवाज़े बने थे, जिनमें दौलतखाना, रेजीडेंसी, बिबियापुर कोठी, चौक बाजार प्रमुख हैं.
हर नवाब ने दी अपनी पहचान
फिर सआदत अली खां के जमाने में दिलकुशमहल, बेली गारद दरवाज़ा और लाल बारादरी का निर्माण हुआ. इसी तरह ग़ाज़ीउद्दीन हैदर ने मोतीमहल, मुबारक मंजिल सआदत अली और खुर्शीदज़ादी के मक़बरे, नसीरुद्दीन हैदर के जमाने में प्रसिद्ध छतर मंजिल और शाहनजफ़ इमामबाड़ा, मुहम्मद अलीशाह ने हुसैनाबाद का इमामबाड़ा, बड़ी जामा मस्जिद और हुसैनाबाद की बारादरी बनवाई और अंतिम नवाब वाजिद अली शाह ने लखनऊ के विशाल एवं भव्य कैसर बाग़ का निर्माण करवाया.
1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम में शामिल
1856 ई. में अंग्रेज़ों ने वाजिद अली शाह को गद्दी से उतारकर अवध की रियासत की समाप्ति कर दी और उसे ब्रिटिश भारत में शामिल कर लिया. 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम में लखनऊ ने अपनी पहचान बनाई. यहां जनता ने रेजीडेंसी सहित कई इमारतों पर कब्जा कर लिया लेकिन बाद में अंग्रेज यहां दोबारा काबिज हो गए और उसके बाद स्वतंत्रता संग्राम के सैनिकों को कठोर दंड दिया गया.
यूपी नाम की कहानी और इलाहाबाद से लखनऊ हुआ राजधानी
1902 में नार्थ वेस्ट प्रोविन्स का नाम बदलकर यूनाइटिड प्रोविन्स ऑफ़ आगरा एंड अवध कर दिया गया. यहीं से आम बोलचाल में यूनाइटेड प्रोविन्स को यूपी कहा जाने लगा. 1920 में अंग्रेजों ने यूपी की राजधानी को इलाहाबाद से लखनऊ स्थानांतरित कर दी. आजादी मिलने के बाद 12 जनवरी 1950 को इसका नाम बदलकर उत्तर प्रदेश रख दिया गया और लखनऊ इसकी राजधानी बना. वहीं उत्तर प्रदेश का हाईकोर्ट इलाहाबाद ही बना रहा और लखनऊ में उच्च न्यायालय की बेंच स्थापित की गई.
भौगोलिक स्थिति
इस शहर के पूर्वी ओर बाराबंकी जिला है तो पश्चिमी ओर उन्नाव और दक्षिण में रायबरेली जिला है. इसके उत्तर में सीतापुर और हरदोई जिले हैं. गोमती नदी लखनऊ के बीच से गुजरती है. ये शहर को दो हिस्सों में बांटती है, एक मुख्य शहर है, दूसरा ट्रांसगोमती इलाका.
जनसंख्या और साक्षरता स्थिति
2011 की जनगणना के अनुसार लखनऊ की आबादी करीब 46 लाख है. इनमें पुरुष करीब 24 लाख और महिलाएं 22 लाख हैं. पुरुष महिला अनुपात की बात करें तो यहां 1000 पुरुषों में 917 महिलाएं हैं. शहर की 77.29 प्रतिशत आबादी साक्षर है, इसमें पुरुषों की साक्षरता दर करीब 83 प्रतिशत, वहीं महिलाओं की करीब 72 प्रतिशत है.
धर्म
लखनऊ में करीब 77 प्रतिशत की आबादी हिंदू है, वहीं मुस्लिम यहां 21.46 प्रतिशत हैं. सिक्ख करीब 0.52 % और क्रिश्चियन 0.45 % हैं. इनके अलावा बंगाली, दक्षिण भारतीय, बौद्ध और जैन की भी थोड़ी सी आबादी है.
सियासत
लखनऊ की लोकसभा सीट राजनीतिक उद्देश्य से काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है. केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह यहां से लगातार दो बार से सांसद है. उन्होंने 2014 और 2019 में यहां से आसान जीत दर्ज की.
इतिहास की बात करें तो 1951-1967 तक यहां कांग्रेस पाटी ने अपनी हैट्रिक लगाई. इसके बाद यहां लोकदल, जनता दल व कांग्रेस ने बारी-बारी प्रभुत्व बनाए रखा, लेकिन 1991 के बाद से ये सीट बीजेपी के मजबूत गढ़ में शुमार हो गई. 1991 से 2009 तक यहां बीजेपी के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने लगातार जीत दर्ज की. लखनऊ के सांसद अटल बिहारी वाजपेयी दो बार, 16 मई, 1996 से 1 जून, 1996 तक और फिर 19 मार्च, 1998 से 22 मई, 2004 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे.अटल के राजनीति से दूर होने के बाद इस सीट से लालजी टंडन 2009 में लोकसभा पहुंचे.
लखनऊ क्षेत्र के अंतर्गत विधानसभा की 5 सीटें आती हैं, जिसमें लखनऊ पूर्व, लखनऊ मध्य, लखनऊ पश्चिम, लखनऊ उत्तर व लखनऊ कैंट शामिल हैं.
प्रमुख राजनेता की कर्मभूमि
अटल बिहारी वाजपेयी, भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित, नेहरू की सरहज शीला कौल, हेमवती नंदन बहुगुणा. इनके अलावा श्योराजवती नेहरू, पुलिन बिहारी बनर्जी, बीके धवन कांग्रेस सांसद रहे, 1967 में आनंद नारायण मुल्ला चुनाव जीते थे.
1977 की कांग्रेस-विरोधी लहर में भारतीय लोकदल के प्रत्याशी के रूप में हेमवती नंदन बहुगुणा यहां से जीते, लेकिन 1980 में शीला कौल ने कांग्रेस की वापसी करवा दी. 1984 में भी वही यहां से सांसद बनीं. 1989 में जनता दल के मान्धाता सिंह ने यहां कब्ज़ा किया.
बॉलीवुड में अलग पहचान
लखनऊ सिनमा उद्योग की शुरुआत से ही प्रेरणा रहा है. अवध से कई पटकथा लेखक एवं गीतकार हैं, जैसे मजरूह सुलतानपुरी, कैफ़े आज़मी, जावेद अख्तर, अली रज़ा, भगवती चरण वर्मा, डॉ कुमुद नागर, डॉ अचला नागर, वजाहत मिर्ज़ा, अमृतलाल नागर, अली सरदार जाफरी और के पी सक्सेना जिन्होंने भारतीय चलचित्र को प्रतिभा से धनी बनाया. लखनऊ पर बहुत सी प्रसिद्ध फिल्में बनी, जैसे शशि कपूर की जुनून, मुज़फ्फर अली की उमराव जान एवं गमन, सत्यजीत राय की शतरंज के खिलाड़ी की शूटिंग यहीं हुई थी.
बहू बेगम, मेहबूब की मेहंदी, मेरे हुजूर, चौदहवीं का चांद, पाकीज़ा, मैं मेरी पत्नी और वो, सहर, अनवर और बहुत सी हिन्दी फिल्में या तो लखनऊ में बनी हैं या उनकी पृष्ठभूमि लखनऊ की है. गदर फिल्म में भी पाकिस्तान के दृश्यों में लखनऊ की शूटिंग ही है.
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