Kamaljeet
खुश रहता हूँ आज कल,
दिन भी बीत रहे हैं ठीक ठाक,
ज़्यादा किसी से मतलब नहीं रखता हूँ,
बस कुछ खास लोगों से हो जाती है अक्सर बात।
पर कभी कभी पता नहीं क्यूँ?
एक सन्नाटा सा मन में घर कर जाता है,
ज़ेहन में वैसे तो कोई बेवज़ह का ख़्याल नहीं रहता,
पर इस अजीब सी बेचैनी का दस्तूर समझ नहीं आता है।
जी तो चाहता है किसी के सामने बैठ कर,
करूँ कुछ भी बात,
ज़्यादा कुछ ना भी बोलूँ अगर,
वो समझ जाए मेरे जज़्बात।
कोई तो हो जो गले लगा कर कहे,
एक दिन सब ठीक हो जाएगा,
हो सकता है तब इन आंसुओं के साथ,
पिघल कर ये सन्नाटा भी बह जाएगा।
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