सत्य, अहिंसा और सादगी के बल पर महात्मा गांधी ने देश को आजादी दिलाने में जो योगदान किया, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। विकास के इस डिजिटल युग में भी महात्मा गांधी के विचार उतने ही प्रासंगिक है जितने उस समय हुआ करते हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जुड़ाव हर शहर से रहा और हर जगह उन्होंने सामाजिक सरोकारों के साथ अहिंसात्मक रूप से स्वतंत्रता के आंदोलन को हवा दी।
तहजीब के शहर-ए-लखनऊ से भी उनका बहुत गहरा नाता रहा है। वर्ष 1916 से 1939 के बीच लखनऊ में वह कई बार आए और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ न केवल रणनीति बनाई बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण का संदेश देकर सामाजिक सरोकारों से भी आम लोगों को जोड़ने का प्रयास किया।
बरगद का पौधा बन गया वृक्षः वर्ष 1916 से 1939 के बीच लखनऊ में अपने कई प्रवास के दौरान महात्मा गांधी ने न सिर्फ अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ रणनीति बनाई बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण का महत्व भी शहरवासियों को बता गए थे। दो अक्टूबर 1869 को जन्मे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर्यावरण संरक्षक का यह संदेश हर दिन ऊंचाई को छू रहा है और विशालकाय बरगद का वृक्ष महात्मा गांधी की याद को भी ताजा कर देता है।
गोखले मार्ग पर कांग्रेस नेता शीला कौल के आवास पर 1936 में उन्होंने जो बरगद का पौधा लगाया था वह अब विशालकाय वृक्ष के रूप में खड़ा है और उनकी सोच की छांव में राहगीरों को कड़ी धूप से राहत दे रहा है। मार्च 1936 में रोपे गए इस पेड़ के पास लगा शिलापट अब कोठी के अंदर हो गया है और इस कारण नई पीढ़ी इस पेड़ के महत्व से दूर है। 1920 में उन्होंने चिनहट में एक पूर्व माध्यमिक विद्यालय की आधारशिला रखी थी। 28 सितंबर 1929 को गांधी जी ने चिनहट में स्कूल के पास ही प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र स्थापना की।
एक चुटकी आंटे से बनाया स्कूलः महात्मा गांधी ने न केवल देश को फिरंगियों से मुक्त करने का आंदोलन किया बल्कि शिक्षा को लेकर भी सामाजिक आंदोलन चलाया। काकोरी शहीद स्मारक आयोजन समिति के महामंत्री उदय खत्री ने बताया कि हुसैनगंज में चुटकी भंडार स्कूल की स्थापना 1921 में गांधी जी के आह्वान पर की गई थी। तिलक स्वराज फंड के लिए चंदा एकत्र करने का जिम्मा महिलाओं को सौंपा गया था। इस आह्वान पर महिलाओं ने खाना बनाते वक्त चंदे वाली हांडी में चुटकी भर आटा रोज डालना शुरू कर दिया था।
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