लखनऊ में बड़े मंगल पर भंडारों का 400 साल पुराना इतिहास रहा है। कहा जाता है, देशभर में भंडारों की नींव लखनऊ के बड़े मंगल पर होने वाले भंडारे से ही पड़ी। यहां के भंडारे की खासियत है कि आज भी इसमें हिंदुओं के साथ मुस्लिम भी शामिल होते हैं।
ज्येष्ठ के पहले बड़े मंगल की शुरुआत अलीगंज के पुराने हनुमान मंदिर परिसर में मेले के रूप में हुई थी। नवाब सआदत अली के कार्यकाल (1798-1814) के दौरान मंदिर का निर्माण हुआ था। उन्होंने अपनी मां आलिया बेगम के कहने पर मंदिर का निर्माण कराया था।
वैसे लखनऊ में बड़े मंगल पर भंडारे कब और कैसे शुरू हुए, इसकी सिलसिलेवार तीन मान्यताएं जानिए…
पहली मान्यता
बेगम को ख्वाब में मूर्ति दिखी, हाथी छोड़े गए
अवध के तीसरे नवाब शुजाउद्दौला थे। उनकी बेगम मल्लिका आलिया थी। बेगम को ख्वाब में एक दिव्य स्थल पर मूर्ति का दर्शन हुआ। लगातार कई दिनों तक यही ख्वाब उन्हें आते रहे। उन्होंने जानकार पंडितों और मौलवियों से इस बारे में चर्चा की।
तय हुआ, फैजाबाद से एक हाथी को रवाना किया जाएगा। हाथी को दूध से नहला-धुलाकर तैयार किया गया। फिर पूजा-पाठ करके रवाना किया गया। हाथी लखनऊ में गोमती नदी से पहले ही तट पर आकर रुक गया। सभी को लगा कि हाथी थक गया होगा या फिर कुछ परेशानी होगी, इसलिए रुका होगा।
दूसरा हाथी फिर उसी विधि-विधान से तैयार किया गया। वो भी यहीं आकर रुक गया। माना गया, पहले हाथी को देखकर दूसरे ने भी ऐसा किया। अब तीसरा हाथी फिर से फैजाबाद से तैयार करके भेजा गया। ये हाथी भी उसी जगह पर आकर रुक गया।
पंडितों को लगा, यह स्थान खास है। सभी की सहमति से खुदाई शुरू की गई। वहां हनुमानजी की मूर्ति मिली। तभी बेगम ने इस जगह पर मंदिर बनवाने का निर्णय लिया। ये करीब 1760 की बात है। इसी स्थान पर विशाल मंदिर बना, जो अब अलीगंज हनुमान मंदिर के नाम से जाना जाता है।
मंदिर बनने के बाद यहां के पंडित और पुजारी बेगम साहिबा के पास शुक्रिया अदा करने आए। तब बेगम ने पूछा- भक्त और श्रद्धालु मंदिर आएंगे, उनके लिए प्रसाद और जलपान की व्यवस्था हुई या नहीं। पंडितों ने बताया- अभी तो ऐसा कुछ नहीं है। बेगम ने कुछ आराजी (जमीन) इस मंदिर के नाम की। कहा- इसकी आमदनी से मंदिर दर्शन करने वालों के लिए प्रसाद का इंतजाम किया जाए।
हनुमानजी का दिन मंगलवार का है। फिर तय हुआ कि साल में 2 बार विशेष आयोजन होगा। गर्मी के दिनों में या कहें तो जेठ महीने में बड़ा आयोजन करने की शुरुआत हुई। पहले लड्डू, चना और शरबत से शुरू हुआ। बाद में पूड़ी, कचौड़ी और आलू भी दिया जाने लगा।
दूसरी मान्यता
बेगम का बेटा बीमार हुआ, हनुमान जी से मन्नत मांगी
अवध के नवाब परिवार के कुछ सदस्य भी हनुमानजी के भक्त थे। 400 साल पहले इन्हीं में से एक आलिया बेगम थीं। उन्हीं के नाम पर अलीगंज इलाका बसा। एक बार आलिया बेगम के बेटे की तबीयत बेहद खराब हो गई। जब कहीं कोई उम्मीद नहीं बची, तब उन्होंने हनुमानजी से प्रार्थना की। यहां दर्शन करने के बाद उनका बेटा ठीक हो गया। तभी उन्होंने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था।
ऐसी भी मान्यता है कि नवाब बजरंगबली की ये मूर्ति इमामबाड़े के पास ले जाना चाहते थे। एक हाथी पर मूर्ति रखकर ले जाया गया, लेकिन हाथी गोमती के तट को पार नहीं कर पाया। कुछ ही दूर पर बैठ गया। जिस स्थान पर हाथी रुका, वहीं नया हनुमान मंदिर स्थापित किया गया। फिर बड़े मंगल पर भंडारे की शुरुआत हुई।
प्राचीन लेटे हनुमानजी के मुख्य पुरोहित डॉ. विवेक तांगड़ी कहते हैं- लखनऊ में ऐसी परंपरा थी कि जेठ महीने में रात करीब 1 बजे लोग घरों से निकलते थे। छोटे बच्चे लंगोट पहन कर निकलते थे। पैदल नंगे पांव या लेट कर दूरी तय करते थे। सुबह 8 या 9 बजे तक मंदिर पहुंचते थे। अभी भी कई लोग पैदल या फिर अपने घर से नंगे पांव चलकर बजरंगबली के दर्शन करने आते हैं। ये धर्म और आस्था का विषय है। नवाबों के दौर से ये चला आ रहा है। यहां की यही गंगा-जमुनी तहजीब है।
उन्होंने कहा- वैसे भी हनुमानजी कर्म के देवता हैं। वो सेतु का काम करते हैं। चाहे सुग्रीव से भगवान की मित्रता कराकर उनका काम करवाना हो या फिर विभीषण को प्रभु से मिलाकर उन्हें लंकापति बनाना हो। इन सभी में हनुमानजी का अहम योगदान रहा। वो हमेशा सदैव संकटमोचक रहे। भगवान ने कहा था- हे कपीश्वर! मैं आपके ऋण से कभी मुक्त नहीं रह सकता। वो सभी के संकट हरते। हनुमानजी की सबसे बड़ी सेवा, प्यासे को पानी और भूखे को भोजन देना है। यही हमारा धर्म भी सिखाता है।
तीसरी मान्यता
मंदिर का पौराणिक उल्लेख, महामारी फैली थी
श्रीराम के कहने पर लक्ष्मणजी, माता सीता को अयोध्या से महर्षि वाल्मीकि के आश्रम लेकर जा रहे थे। रास्ते में लक्ष्मणपुरी नगरी पड़ी। लक्ष्मण टीले पर (आज की टीले वाली मस्जिद) पर लक्ष्मणजी रुके, पर सीताजी ने यहीं जंगलों में विश्राम किया। यहां उनकी रक्षा के लिए स्वयं बजरंगबली मौजूद रहे। तभी से इस जगह पर हनुमान रक्षक बनकर विराजमान हैं।
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