मक्के की प्रोसेसिंग में इसके दाने निकालना सबसे मुश्किल काम है। इसलिए मैंने सबसे पहले यह मशीन बनाई, जिसकी लागत 20 हज़ार रुपये आई है। चीन में ऐसी ही मशीन ढाई लाख रुपये से ज्यादा कीमत की है।
लॉकडाउन में जहां बहुत से किसान अपनी फसल की बिक्री को लेकर परेशान थे वहीं बहुत से लोगों ने दूसरों के लिए एक मिसाल पेश की है। तमिलनाडु में कोलार जिला के ग्रामीणों ने और तीर्थहल्ली के एक युवा उद्यमी ने किसानों की मदद के लिए फसल की प्रोसेसिंग करके अच्छा उदहारण पेश किया है।
कोलार में गाँव वालों ने टमाटर और प्याज को धूप में सुखाकर फ्लेक्स और अचार बनाया तो वहीं, तिर्थाहल्ली में कद्दू से ‘आगरा पेठा’ बनाया गया। हालांकि, यह कोशिश किसी और की थी जो किसानों के लिए रंग लाई। पर हमारे देश में ऐसे बहुत से उद्यमी किसान हैं, जो खुद अपनी फसल की प्रोसेसिंग कर उत्पाद बनाकर बेचते हैं।
राजस्थान के आंवला किसान कैलाश चौधरी ने अपने खेतों पर ही प्रोसेसिंग यूनिट सेट-अप की हुई है और आंवले के तरह-तरह के उत्पाद बनाकर वह अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। वहीं, एक महिला किसान नीलम आर्या अपने घर में ही हाथ की चाकी से बाजरा पीसकर लड्डू और बर्फी आदि बनाती हैं और बिक्री करती हैं। ऐसे ही हरियाणा के एक किसान हैं धर्मबीर कंबोज, जो अंतरराष्ट्रीय आविष्कारक भी हैं।
हरियाणा में यमुनानगर के दामला गाँव में रहने वाले किसान अन्वेषक धर्मबीर कंबोज ने सालों पहले मल्टी-पर्पस प्रोसेसिंग मशीन इजाद की थी। उनकी इस मशीन से किसी भी फसल जैसे एलोवेरा,आंवला, तुलसी, आम, अमरुद आदि को प्रोसेस कर सकते हैं। आपको अलग-अलग प्रोडक्ट बनाने के लिए अलग-अलग मशीन की ज़रूरत नहीं है। किसी भी चीज़ का जैल, ज्यूस, तेल, शैम्पू, अर्क आदि इस एक मशीन में ही बना सकते हैं।
धर्मबीर कहते हैं कि उन्होंने एक बार पुष्कर का दौरा किया, जहां किसान समूह को गुलाब का इत्र बनाने की ट्रेनिंग दी गई थी। वहीं से उन्हें अपनी फसलों की प्रोसेसिंग करने की प्रेरणा मिली। उस दौरे के बाद ही उन्होंने खुद प्रोसेसिंग मशीन बनाई। साल 2005 के आसपास उन्होंने मशीन बनाकर एलोवेरा की प्रोसेसिंग शुरू की।
“मैंने अपने खेतों में वही फसल लगाई, जिससे बनने वाले उत्पादों की अच्छी मांग हो। इसमें एलोवेरा का नाम सबसे पहले आया तो मैंने एलोवेरा की खेती शुरू की। अपने खेतों के पास ही मैंने प्रोसेसिंग यूनिट सेट-अप कर ली। फसल तैयार होने के बाद, मैं वहीं पर उसे मशीन में प्रोसेस करके जूस और जैल बनाता था। इन्हें छोटी-छोटी बोतलों में पैक करके स्थानीय इलाकों में ही मार्केटिंग शुरू की” उन्होंने बताया।
धर्मबीर का यह आईडिया कामयाब हो गया और उन्हें प्रोसेसिंग के बाद उत्पादों के ज्यादा दाम मिले। धीरे-धीरे उन्होंने दूसरी फसलों पर भी हाथ अजमाया जैसे तुलसी, आंवला, चकुंदर, प्याज, लहसुन, जामुन, आम और अमरुद आदि। साल 2009 में उन्हें नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन द्वारा सम्मानित किया गया और इसके बाद उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली। उन्होंने हनी बी नेटवर्क की मदद से पूरे भारत और कई विदेश यात्राएं भी की हैं। इस दौरान, उन्होंने दूसरे किसानों को अपना आईडिया समझाया और साथ ही, उनसे भी कुछ न कुछ नया सीखते रहे।
वह बताते हैं कि कुछ समय पहले उन्हें अपने एक दौरे के दौरान मक्का के अलग-अलग आइटम देखने का मौका मिला। इसके बाद, उन्होंने सोचा कि क्यों न मक्का की प्रोसेसिंग पर हाथ आजमाया जाए। इसलिए उन्होंने सीजन आते ही मक्का बो दी। “मक्का वैसे तो 18 से 20 रुपए किलो बिकता है और उसका आटा 25 रुपए किलो तक बिकता है । लेकिन अगर मक्के को पकने से पहले ही कच्ची मक्का की हार्वेस्टिंग कर ली जाए तो किसानों को और भी फायदा होगा। कच्ची मक्का की प्रोसेसिंग से आप स्वीट कॉर्न के अलावा और भी बहुत से उत्पाद बना सकते हैं,” उन्होंने कहा।
उन्होंने कहा कि स्वीट कॉर्न की कीमत 40 से 80 रुपए प्रति किलो है और यह 1 एकड़ भूमि में 30 क्विंटल तक निकल आता है जबकि मक्का पकने पर 20 से 25 क्विंटल तक ही निकलता है। धर्मबीर को जब मक्का की प्रोसेसिंग का ख्याल आया, तब उन्हें यह भी पता था कि मक्के के दाने आसानी से कम समय में निकालने के लिए उन्हें मशीन की ज़रूरत भी पड़ेगी। यहाँ उन्होंने अपना आविष्कारक का दिमाग लगाया और लॉकडाउन के दौरान ही एक बैरिंग और कुछ स्टेल की प्लेट आदि लगाकर मक्के के दाने निकालने वाली मशीन तैयार कर ली।
पहली दो बार में मैं असफल रहा लेकिन तीसरे प्रयास में एकदम सही मशीन बन गई। इसकी कुल लागत 20 हज़ार रुपये आई। मशीन को बनाने के लिए मैंने यूट्यूब पर कॉर्न प्रोसेसिंग के बहुत से प्रोडक्ट्स को देखा और समझा। चीन में यही मशीन ढाई लाख से ज्यादा कीमत की मिलती है,” उन्होंने आगे कहा।
उन्होंने अपने खेत में खड़ी मक्के की फसल को पूरा पकने से पहले ही हार्वेस्ट कर लिया और उसकी प्रोसेसिंग पर ध्यान दिया। धर्मबीर कहते हैं कि उन्होंने मक्की का दूध बनाने की सोची। इसका आईडिया उन्हें कॉर्न स्टार्च से मिला। उन्होंने गौर किया कि अगर मक्के से स्टार्च बन सकता है तो दूध भी ज़रूर निकाला जा सकता है। उन्होंने कच्ची मक्का के दानों को मशीन से निकाला और फिर अपनी मल्टी-फ़ूड प्रोसेसिंग मशीन में डाल दिया।
उनकी प्रोसेसिंग मशीन में मक्के के इन दानों से दूध निकाला गया। धर्मवीर आगे कहते हैं कि मक्की का दूध बनाने के बाद उन्होंने सोचा कि इसे मार्किट कैसे किया जाए। उन्होंने इसमें कुछ मात्रा पानी, गाय का दूध मिलाया और इसे गर्म किया। गर्म करते समय उन्होंने दाने निकलने के बाद बचे उसके डंठल और छिलकों को भी साफ़ करके इसमें डाल दिया ताकि मक्की का फ्लेवर रहे। अच्छे से गर्म होने के बाद इसमें चीनी मिलाई गई और फिर इसे ठंडा होने बाद कांच की बोतलों में पैक किया गया।
वह बताते हैं कि उन्होंने एक 200 मिली की बोतल को 20 रुपये में बेचा। उन्होंने अपने पास में एक दुकानदार को इस दूध की 35 बोतल पैक करके दी, जो हाथ की हाथ बिक गईं। धर्मबीर कहते हैं, “अगर कोई किसान भाई मक्का उगता है तो वह इसकी प्रोसेसिंग के ज़रिए भी अच्छा कमा सकता है। मक्के के धूध से चाय भी बन सकती है। इसका इस्तेमाल गाजर का हलवा बनाने में भी हो सकता है। आप देखिएगा कि एक दिन हम कच्ची मक्का से न सिर्फ दूध बल्कि कैंडी, पेड़ा, पनीर और मिल्क केक आदि भी बनाएंगे।
कुछ दिन पहले, धर्मबीर ने हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल को भी मक्की का दूध भेंट किया और उन्हें इस प्रोजेक्ट के बारे में बताया। मुख्यमंत्री ने उनकी सराहना करते हुए कहा कि धर्मबीर कंबोज सभी किसानों के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं।उनके मक्के के दूध के चर्चे पूरे राज्य में हो रहे हैं। बहुत से किसान उनसे संपर्क कर रहे हैं। उचानी के मक्का बोर्ड में कार्यरत डॉ. मेहर चंद ने भी उनकी प्रोसेसिंग यूनिट पर पहुंचकर इस बारे में जानकारी ली।
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