लखनऊ | राजधानी लखनऊ के हजरतगंज सेलगभग 35 किलोमीटरदूर गोमती नदी के तट पर स्थितचन्द्रिका देवी मंदिर की महिमाअपरम्पार है। कहा जाता है किगोमती नदी के समीप स्थित महीसागरसंगम तीर्थ के तट पर एक पुरातननीम के वृक्ष के कोटर में नौदुर्गाओं के साथ उनकी वेदियां चिरकाल से सुरक्षित रखी हुई हैं। यहां शंकर जी की विशाल कायप्रतिमा आकर्षण का केंद्र हैपुराणों के अनुसार इस धाम में श्राप मुक्ति के लिए चन्द्रमा को भी स्नान करने के लिए आनापड़ा था।
तीन दिशाओं में प्रवाहितहोती है गोमती नदी की जलधारा
मांचन्द्रिका के भव्य मंदिर केपास से निकली गोमती नदी कीजलधारा चन्द्रिका देवी धामकी तीन दिशाओं उत्तर,पश्चिम औरदक्षिण में प्रवाहित होती हैतथा पूर्व दिशा में महीसागरसंगम तीर्थ स्थित है जिसमेंशिव जी की विशाल मूर्ति स्थापितहै। बुजुर्ग कहते हैं स्कन्दपुराण के अनुसार द्वापर युगमें घटोत्कच के पुत्र बर्बरीकने मां चन्द्रिका देवी धामस्थित महीसागर संगम में तपकिया था। बताया जाता है महीसागरसंगम तीर्थ में कभी भी जल काअभाव नहीं होता और इसका सीधासंबंध पाताल से है। आज भी करोड़ोंभक्त यहां महारथी वीर बर्बरीककी पूजा-आराधनाकरते हैं और कुण्ड में स्नानकरके खुद को पवित्र करते हैजिसके बाद मंदिर में प्रसादचढ़ाते हैं।
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चुनरी की गांठ बांधकर भक्त मांगते है मन्नत
यहां हर दिन सैकड़ों की संख्या मेंआने वाले भक्त अपनी मनोकामनापूरी करने के लिए मां के दरबारमें आकर मन्नत माँगते हैं,और चुनरीकी गांठ बांधते हैं तथा मनोकामनापूरी होने पर माँ को चुनरी,प्रसादचढ़ाकर मंदिर परिसर में घण्टाबांधते हैं। अमीर हो अथवागरीब, अगड़ाहो अथवा पिछड़ा, मांचन्द्रिका देवी के दरबार मेंसभी भक्त मत्था टेक कर अपनेमन की मुराद मांगते हैं माँमंदिर में आने वाले सभी भक्तोंकी मनोकामना पूरी करती हैं।
चन्द्रमाको भी श्रापमुक्ति के लिए पड़ाथा आना ।
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पुराणों के अनुसार दक्ष प्रजापति केश्राप से प्रभावित चन्द्रमाको भी श्रापमुक्ति के लिएचन्द्रिका धाम स्थित महीसागरसंगम तीर्थ के जल में स्नानकरने के लिए आना पड़ा था। त्रेतायुग में लक्ष्मणपुरी (लखनऊ)के अधिपतिउर्मिला पुत्र चन्द्रकेतुको चन्द्रिका देवी धाम केतत्कालीन इस वन क्षेत्र मेंअमावस्या की अर्धरात्रि मेंजब भय व्याप्त होने लगा तोउन्होंने अपनी माता द्वाराबताई गई नवदुर्गाओं का स्मरणकिया और उनकी आराधना की। तबचन्द्रिका देवी की चन्द्रिकाके आभास से उनका सारा भय दूरहो गया था तभी से इस पवित्रधाम की मान्यता है।
पांचोंपाण्डव पधारे थे चन्द्रिकाधाम
पुराणोंके अनुसार महाराजा युधिष्ठिरने अश्वमेध यज्ञ कराया जिसकाघोड़ा चन्द्रिका देवी धाम केनिकट राज्य के तत्कालीन राजाहंसध्वज द्वारा रोके जाने परयुधिष्ठिर की सेना से उन्हेंयुद्ध करना पड़ा, जिसमेंउनका पुत्र सुरथ तो सम्मिलितहुआ, किन्तुदूसरा पुत्र सुधन्वा चन्द्रिकादेवी धाम में नवदुर्गाओं कीपूजा-आराधनामें लीन था और युद्ध में अनुपस्थिति के कारण इसीमहीसागर क्षेत्र में उसे खौलतेतेल के कड़ाहे में डालकर उसकीपरीक्षा ली गई महाभारतकालमें पांचों पाण्डव पुत्रद्रोपदी के साथ अपने वनवासके समय इस तीर्थ पर आए थे। मांचन्द्रिका देवी की कृपा केचलते उसके शरीर पर कोई प्रभावनहीं पड़ा। तभी से इस तीर्थको सुधन्वा कुण्ड भी कहा जानेलगा। महाराजा युधिष्ठिर कीसेना अर्थात कटक ने यहां वासकिया तो यह गांव कटकवासा कहलाया।तबसे आज भी इस गांव को कठवाराके नाम से जाना जाता है।
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मंदिरपरिसर पॉलिथीन मुक्त
मेलेके व्यवस्था संस्थापक स्व.ठाकुरबेनीसिंह चौहान के वंशज अखिलेशसिंह के अनुसार वह कठवारा गांवके प्रधान भी रहे हैं उनकेप्रयास से मंदिर परिसर कोपॉलिथीन मुक्त किया गया हैताकि यहां प्राकृतिक वातावरणमें किसी प्रकार का प्रदूषणन फैले यहां पर मिलने वालाप्रसाद भी दुकानदार कागज केलिफाफे में देते हैं.मंदिर परिसरमें लगने वाली दुकानों पर पानमसाला भी प्रतिबंधित है मंदिरपरिसर के अंदर का माहौल हर समयभक्तिमय रहता है यहां आने वालेलोग बताते हैं माँ के दर परपहुंचते ही सारी बाधाएं दूर हो जाती है।
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