लखनऊ में रीयल एस्टेट का कारोबार पूरी तरह बदल रहा है। कोरोना के चलते वर्क फ्रॉम होम की संस्कृति आने के बाद बडे़ घर की जरूरत ने तैयार फ्लैटों की मांग बढ़ाई है, वहीं नए प्रोजेक्ट्स पर दो साल के लिए ब्रेक भी लगा दिया है। ऐसे में बिल्डरों ने भी पूरा ध्यान रेडी टू मूव फ्लैट और मकानों पर लगा दिया है। इस बीच सात फीसदी से भी कम होमलोन की दर नया घर खरीदने वालों को लुभा रही है।
विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना के बाद निवेशक इस सेक्टर से पूरी तरह बाहर हो गया है। अब जरूरतमंद खरीदारों की मांग पर पूरा सेक्टर आगे बढ़ रहा है। इसके चलते संगठित और असंगठित बिल्डर नए प्रोजेक्ट लाने से बच रहे हैं। जो प्रोजेक्ट लॉन्च भी हो रहे हैं उनकी प्रक्रिया एलडीए या आवास विकास परिषद व रेरा से पहले ही पूरी है। इनमें भी निर्माण तेजी से नहीं कराया जा रहा है।
विशेषज्ञों के अनुसार, छह माह से लेकर दो साल में लॉन्च होने वाले प्रोजेक्ट अब रोके जा रहे हैं। इसीका नतीजा है कि एलडीए ने एक अप्रैल से अब तक 300 वर्गमी. से बड़े भूखंड के केवल 55 नक्शे पास किए हैं। इसमें से 10 फीसदी से भी कम ग्रुप हाउसिंग के हैं। विशेषज्ञों का आकलन है कि लखनऊ में करीब एक लाख आवासीय यूनिट का सालाना बाजार होता रहा है। जबकि मौजूदा समय में नई बुकिंग 20 प्रतिशत भी नहीं रह गई है। ऐसे में बिल्डरों का पूरा फोकस 25 हजार रेडी टू मूव फ्लैट और मकानों के ग्राहक तलाशने पर है।
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हर साल बढ़ता किराया भी मांग बढ़ने की वजह
एलडीए के लिए सर्वे करने वाली एक दिग्गज रीयल एस्टेट सलाहकार फर्म के रिकॉर्ड के मुताबिक, राजधानी में करीब 30 हजार मकान बिना बिके पड़े हैं। इनमें से अधिकांश रेडी टू मूव हैं। कुछ अधूरे प्रोजेक्ट को कम भी कर दिया जाए तो 25 हजार से अधिक यूनिट ऐसे हैं, जिनमें छह महीने में कब्जा दिया जा सकता है।
एक ऑनलाइन पोर्टल के मुताबिक, तीन साल में लखनऊ में फ्लैटों की कीमत 3500 से 4000 रुपये प्रति वर्गफीट के बीच बनी हुई है। दूसरी ओर, अभी तक फ्लैटों के निर्माण को प्राथमिकता देने वाले एलडीए और आवास विकास परिषद तक को भूखंड पर लौटना पड़ रहा है। एलडीए जहां बसंतकुंज में भूखंड बेच रहा है। वहीं, आवास विकास परिषद ने अवध विहार योजना में अपने ले-आउट बदलकर भूखंड के लिए आवेदन शुरू किए हैं। मांग नहीं होने पर आवास विकास परिषद निजी बैंक के जरिए घरों में पहली बार पर्चे डलवा रहा है।
राजधानी के कई प्रमुख बिल्डरों के लिए सीईओ के तौर पर काम कर चुकीं रीयल एस्टेट विशेषज्ञ नीलिमा सक्सेना का कहना है कि कोरोना से दो तरह का नया खरीदार आया है। एक खरीदार वो है जो परिवार संग किराए के मकान में रहता है, हर साल बढ़ते किराए व सामाजिक कारणों से उसे घर की जरूरत महसूस हुई है।
बड़ी कंपनियां करेंगी प्रवेश, खरीदार को मिलेगा बेहतर माहौल
वहीं, वर्क फ्रॉम होम अब संस्कृति बन गया है। कंपनियों ने भी इसे टेस्ट कर लिया है और यह जारी रहने वाला है। ऐसे में लोगों को अब ज्यादा जगह की जरूरत होगी। ऐसे लोग भी फ्लैट या मकान खरीदने का मन बना चुके हैं। त्यौहारी सीजन में रीयल एस्टेट में तेजी आएगी। लखनऊ में कोरोना पीक पर है। ऐसे में अब लोगों का भरोसा वापस खर्च करने की तरफ लौट रहा है।
एल्डिको समूह के सीईओ एसके जग्गी का कहना है कि कोरोना ने अब रीयल एस्टेट को संगठित सेक्टर की तरह काम करने के लिए माहौल दिया है। रेरा की वजह से इस पर काम शुरू हुआ। अब कोरोना की वजह से बिल्डर्स पर भी साख बनाने का दबाव है। ऐसे में अब बड़े कॉरपोरेट समूह भी लखनऊ के रीयल एस्टेट में प्रवेश करेंगे।
इससे प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और खरीदार को बेहतर माहौल मिलेगा। यह स्थिति समय पर प्रोजेक्ट को पूरा कर खरीदार का भरोसा बनाने में भी सहयोग करेगी। मकान या फ्लैट खरीदने का यह सबसे उपयुक्त समय है। एक तरफ होमलोन सबसे न्यूनतम दर पर है। वहीं, बिल्डर भी डिस्काउंट या दूसरे ऑफर देकर बिक्री कर रहे हैं। आने वाले दिनों में रीयल एस्टेट सेक्टर बेहतर होगा। नए प्रोजेक्ट भले ही न आएं। रेडी टू मूव का खरीदार अभी बना हुआ है।
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